बंद है अब लहरों में हलचल ,
सागर के सम शांत है मन ।
अब कोई शंका रही न मन में ,
न कोई प्रश्न ,न कोई उलझन ।
न कोई जिरह, न ज़ोर, न ज़िद है ,
न कोई ख़लिश ,न कोई चुभन ।
न कोई ख्वाब ,न ख्वाहिश बाकी ,
अमन हो गया अब मेरा मन ।
दूर हुए सब मन के अँधेरे ,
राह हो गयी अब रौशन ।
रैन- बसेरा है यह जग तो ,
असल धाम है दूर गगन ।
यहाँ न कोई तेरा, न मेरा ,
सब निज स्वार्थ के हैं बंधन ।
आते जाते रहते हैं प्राणी ,
सफ़र के साथी हैं सब जन ।
देख रही हूँ दृष्टा बन कर ,
सृष्टि का यह आवागमन ।
कैसे हैं उसके खेल निराले ,
कैसे अदभुत चाल-चलन ।
उसके खेल हैं वह ही जाने ,
क्यों मन तू ,करता चिंतन ?
सौंप दे जीवन उसके हवाले ,
फिर हो जा बस मस्त मगन ।
सागर के सम शांत है मन ।
अब कोई शंका रही न मन में ,
न कोई प्रश्न ,न कोई उलझन ।
न कोई जिरह, न ज़ोर, न ज़िद है ,
न कोई ख़लिश ,न कोई चुभन ।
न कोई ख्वाब ,न ख्वाहिश बाकी ,
अमन हो गया अब मेरा मन ।
दूर हुए सब मन के अँधेरे ,
राह हो गयी अब रौशन ।
रैन- बसेरा है यह जग तो ,
असल धाम है दूर गगन ।
यहाँ न कोई तेरा, न मेरा ,
सब निज स्वार्थ के हैं बंधन ।
आते जाते रहते हैं प्राणी ,
सफ़र के साथी हैं सब जन ।
देख रही हूँ दृष्टा बन कर ,
सृष्टि का यह आवागमन ।
कैसे हैं उसके खेल निराले ,
कैसे अदभुत चाल-चलन ।
उसके खेल हैं वह ही जाने ,
क्यों मन तू ,करता चिंतन ?
सौंप दे जीवन उसके हवाले ,
फिर हो जा बस मस्त मगन ।